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नाथ अनाथन की सब जानै / जुगलप्रिया

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नाथ अनाथन की सब जानै।
ठाढ़ी द्वार पुकार करति हौं श्रवन सुनत नहिं कहा रिसानै।
की बहु खोट जानि जिय मेरी की कछु स्वारथ हित अरगानै॥
दीन बंधु मनसा के दाता गुन औगुन कैधो मन आनै।
आप एक हम पतित अनेकन यही देखि का मन सकुचानै॥
झूँठो अपनो नाम धरायो समझ रहे हैं हमहि सयानै।
तजो टेक मनमोहन मेरो ‘जुगल प्रिया’ दीजै रस दानै॥