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नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा / माखनलाल चतुर्वेदी

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नाद की प्यालियों, मोद की ले सुरा
गीत के तार-तारों उठी छा गई
प्राण के बाग में प्रीति की पंखिनी
बोल बोली सलोने कि मैं आ गई!

नेह दे नाथ क्या नृत्य के रंग में
भावना की रवानी लुटाने चले?
साँस के पास आ, हास के देस छा,
याद को झुलने में झूलाने चले!

प्रेम की जन्म-गाँठों जगी मंगला-
राग वीणा प्रवीणा सखी भारती,
आज ब्रह्माण्ड के गोपिका गा उठी
सूर्य की रश्मियों श्याम की आरती!

जो उँड़ेली कृपा झोलियाँ, प्यार के--
देश ने, आँसुओं में बहीं, आ गई;
प्राण के बाग में प्रीत की पंखिनी
कूक उट्ठी सवेरे कि मैं आ गई!