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नानी का कम्बल / श्रीनाथ सिंह

नानी का कम्बल है आला,
 देख उसे क्यों डरे न पाला।
ओढ़ बैठती है जब घर में,
 बन जाती है भालू काला।
रात अँधेरी जब होती है,
 ओढ़ उसे नानी सोती है।
तो मैं भी डरता हूँ कुछ कुछ,
 मुन्नी भी डर कर रोती है ।
 पर बिल्ली है जरा न डरती,
लखते ही नानी को टरति ।
चुपके से आ इधर -उधर से,
उसमें म्याऊँ म्याऊँकरती ।
 कहीं मदारी यदि आ जाये,
कम्बल को पहिचान न पाये।
तो यह डर हैडम -डम करके,
पकड़ न नानी को ले जाये।