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नामकरण मत करना मेरा / सरोज मिश्र

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नामकरण मत करना मेरा, जग मुझको पहचान गया है!

निर्जन तट पर बैठा है जो,
उचटा मन लेकर सन्यासी!
कभी यही वैभव नगरी के,
अंतः पुर का था उर वासी!
भोग लिया सब कुछ मत कहना, दुनिया से अनजान गया है!
नामकरण मत करना मेरा, जग मुझको पहचान गया है!

कोयल को बस यही पता है,
गाती है वह मधुर तराना!
क्या उसको ये भी मालूम है,
व्याघ्र साधता सधा निशाना।
क्या छिपना उस बैरी से जो, पता ठिकाना जान गया है!
नामकरण मत करना मेरा, जग मुझको पहचान गया है!

मुझको रोका टोका सबने,
जग मिथ्या है ये बतलाया!
जब जब खींचा कभी पाप ने,
पुण्य रजत दर्पण दिखलाया!
बन्द मुठ्ठियों से भी कहते, साथ नहीं सामान गया है!
नामकरण मत करना मेरा, जग मुझको पहचान गया है!