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नाम जागरण का जीवन है, जग में सोना भूल बड़ी है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

नाम जागरण का जीवन है, जग में सोना भूल बड़ी है
हँसने को यह मिली ज़िन्दगी, इसमें रोना भूल बड़ी है

दुनिया में कुछ कर जाने को, जीवन का वरदान मिला है
आलस के फन्दे में फँसकर, इसको खोना भूल बड़ी है

काँटों को सहचर जो समझे, मंज़िल उसको ही मिलती है
पथ की बाधाओं से डर कर, व्याकुल होना भूल बड़ी है

विपदा तो मानव को उसकी भूलों का अहसास करती
देख-देख कर विपदाओं को रोना-धोना भूल बड़ी है

आशावादी उत्साही के चरण सफलता चूमा करती
निरूत्साह का बोझ निरन्तर मन पर ढोना भूल बड़ी है

सुख-दुख तो साथी हैं दोनों, आते और चले जाते हैं
बात-बात पर अश्रु बहाकर, लड़ी पिरोना भूल बड़ी है

पीड़ा से आकुल प्राणो का दर्द बँटाना मानवता है
मानव होकर मानव के हित काँटे बोना भूल बड़ी है

रसना तो रस पीने और पिलाने को दी है दाता ने
बात-बात पर विषधर बनकर, दंश चुभोना भूल बड़ी है

पोंछ सके निर्धन के आँसू सिर्फ़ धनिकता धन्य वही है
धन के मद में निर्धनता का चीर भिगोना भूल बड़ी है

श्रम के सागर में ही मनचाहे नौलक्खे मोती मिलते
‘मधुप’ निठल्ले बैठ रात-दिन, थूक बिलोना भूल बड़ी है