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नाम जो पाया / रामगोपाल 'रुद्र'

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नाम जो पाया प्यार तेरा था;
मैंने समझा कि काम मेरा था!

तू उतर आया अपनी मर्ज़ी से;
मैंने समझा कि मैंने टेरा था!

बिजली ही थी कि पार लग गया;
किस क़यामत का वह अँधेरा था!

रोशनी खींच ले गई बन में;
देखा तो डाकुओं का डेरा था!

चाँदनी ही तड़प उठी होगी!
चाँद को बादलों ने घेरा था।

तेरा सपना भी छल गया मुझको;
होता क्या, हो चुका सवेरा था!

बिगड़ी न रंगत चित्र की तेरे,
क़ल्ब पर तूने जो उकेरा था।

चित्रशिल्पी भी कहेंगे आगे
'रुद्र' शाइर नहीं, चितेरा था!