भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाव काग़ज़ की लहर पर छोड़ दो / हरि फ़ैज़ाबादी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:20, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= हरि फ़ैज़ाबादी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाव काग़ज़ की लहर पर छोड़ दो
बाक़ी बातें ईश्वर पर छोड़ दो

ज़ख़्म उसके पास अपना भेजकर
दर्द चिट्ठी के असर पर छोड़ दो

साथ देने के लिए कह दो मगर
साथ देना हमसफ़र पर छोड़ दो

आदमी के अस्ल की पहचान को
ख़ुद उसी के जानवर पर छोड़ दो

तुमको जो मालूम है करके बयां
झूठ-सच जज की नज़र पर छोड़ दो

सब नहीं पर कुछ मसायल तो मियां
सात फेरों के सफ़र पर छोड़ दो

जंग जब तक टल सके ये फै़सला
किन्तु, लेकिन, पर, मगर पर छोड़ दो