भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नासमझ यह मोहन ठकुरी / मोहन ठकुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: उसके अपने कभी अपने नही हुए अधूरे सपनों को गले लगाकर बैठा यह मोहन…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=केदार गुरुंग
 +
|संग्रह=
 +
}}
  
 +
<Poem>
 
उसके अपने कभी अपने नही हुए  
 
उसके अपने कभी अपने नही हुए  
  
पंक्ति 21: पंक्ति 27:
  
 
(अनुवाद : स्वयं )
 
(अनुवाद : स्वयं )
 +
<Poem>

20:29, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण

उसके अपने कभी अपने नही हुए

अधूरे सपनों को गले लगाकर

बैठा यह मोहन ठकुरी

गमले के कैकटस जैसा

न फूल सकता है, न फैल सकता है!

उसकी हँसी कृत्रिम है
 
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर

बैठा यह मोहन ठकुरी

किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता

किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !

(अनुवाद : स्वयं )