भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निक्कर पहने जुलाई / प्रदीप शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 15 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारी छुट्टी बीत गई
बस, थोड़ी बाक़ी है

सोचा था
सब पढ़ डालूँगा
गणित और विज्ञान
पर किताब से हो न सकी कुछ
इस ढंग की पहचान

होमवर्क की लिस्ट अभी
बस्ते से झाँकी है

पापा से
वादा था
जाएँगे हम नैनीताल
पर जाने क्यों टाल दिया
जाएँगे अगले साल

मम्मी कहती, देखो सब
ग़लती पापा की है

धूप सुबह से
आ जाती है
कर देती है शाम
अन्दर-बाहर सन्नाटा
दिन भर करता आराम

आती दिखे जुलाई
पहने निक्कर ख़ाकी है