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निगाहों का उजाला ठोकरों से कम नहीं होता / अशोक रावत

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निगाहों का उजाला ठोकरों से कम नहीं होता,
बढ़े चलिए अँधेरों में ज़ियादा दम नहीं होता.

मुझे इतिहास की हर एक घटना याद है,फिर भी,
पड़ौसी पर कभी मेरा भरोसा कम नहीं होता.

भरोसा जीतना है तो ये ख़ंजर फैंकने होंगे,
किसी हथियार से अमनो-अमाँ कायम नहीं होता.

परिंदों की नज़र में पेड़ केवल पेड़ होते हैं,
कोई पीपल, कोई बरगद,कोई शीशम नहीं होता.

नहीं होता मनुष्यों की तरह कोमल हृदय कोई,
मनुष्यों की तरह कोई कहीं निर्मम नहीं होता.

मेरे भारत की मिट्टी में ही कोई बात है वरना,
कोई गाँधी नहीं होता, कोई गौतम नहीं होता.

न जाने क्या गुज़रती होगी उसके दिल पे ऐसे में,
वो रोता भी है, दामन उसका लेकिन नम नहीं होता.