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निज़ामुद्दीन-5 / देवी प्रसाद मिश्र

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इंतज़ार में बैठे-बैठे बहुत तेज़ जमुहाई आई
मन में क्यों कोहराम मचा है दिन का कचरा रात गँवाई
कहाँ बहुरिया ग़ुम है बालम बल्लम दिखता नोंक दिखाई
ज़िन्दा रह कर क्या कर पाए मरने पर क्यों तोप चलाई
कौन इलाका बदले अपना कव्वाली में कजरी गाई
पूँजी इतना गूँजी है कि जो भी थी आवाज़ गँवाई
आओ खुसरो इस झोपड़ में जो चूता है सेज सजाई
ग़ालिब यहीं कहीं होते हैं लोग नहीं तो बकरी आई