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निमिले / हरेकृष्ण डेका

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मेल नहीं

जब मैं उजाले में खड़ा था,
तुमने देखा ही नहीं।

मेरी ओर धुन्ध घेर आई
तो मैं तुम्हें न देख पाया।
अब उजाला है,
तो तुम ही नहीं हो।

इस समय अन्धेरा है हमारे यहाँ,
रास्ता घाट नहीं सूझ रहे।

कभी समय का तो कभी स्थान का
मेल नहीं मिलता, तो
आऊँ कैसे?

बताओ, कैसे आऊँ?
वक़्त का मेल नहीं,
नहीं मिलता हिसाब।

नज़दीक लाना न जानो
तो पास भी दूर है।

हरेकृष्ण डेका की कविता : ’নিমিলে’ का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल असमिया से अनूदित