भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
[[Category: ताँका]]
<poem>
3336
निरभ्र नभ
शैलशृंग चूमते
दो घूँट मिल जाएँ
तो तपन बुझाएँ ।
3437
मोती- सा मन
बरसों था सँभाला
कुछ निपट अंधे,
अकर्ण साथ बँधे।
3538
काई -सी छँटी
अपनों की भीड़ भी
एक तेरा आँचल
एकमात्र सम्बल।
3639
तोड़ने चले
जीवन के घरौंदे
पैरों तले रौंदने
खुद ही मिट गए।
3740
चले जाएँगे,
याद यह रखना