भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निरस्त / राखी सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:03, 4 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राखी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हथेली पर हिना जैसे
रची जा रही थी
पृष्ठ पर एक कविता

कांच जैसा नुकीला
था नोक जिसका
तन्मयता के सीने
में धँस गया

था निमित निर्माण का जो
सब मिटा गया।