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निरस्त / राखी सिंह
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हथेली पर हिना जैसे
रची जा रही थी
पृष्ठ पर एक कविता
कांच जैसा नुकीला
था नोक जिसका
तन्मयता के सीने
में धँस गया
था निमित निर्माण का जो
सब मिटा गया।