"निर्मोही जग -हाइकु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} [[Categ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज | + | |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
− | + | |संग्रह= मेरे सात जनम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ | |
}} | }} | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
पंक्ति 59: | पंक्ति 59: | ||
तेरा ये मन । | तेरा ये मन । | ||
134 | 134 | ||
− | मुझे | + | मुझे भरोसा |
तुम पर इतना | तुम पर इतना | ||
नभ जितना । | नभ जितना । |
01:21, 5 जुलाई 2021 के समय का अवतरण
121
निर्मोही जग
सदा पीर ही बाँटे
सबको काटे ।
122
प्राणों का पंछी
अकेला उड़ चला
साँझ हो गई ।
123
क्रौंच सा मन
व्यथा-बाण-आहत
करो जतन ।
124
सुधा कानों में
घोलते हैं शिशु के
तुतले बोल ।
125
इन नैनों से
आज अमृत चुआ
ये कैसे छुआ ?
126
माथा तुम्हारा
धरा पर चाँद-सा
उजाला किए ।
127
नैन मृगी से
छलके हैं जबसे
अमृत पिए ।
128
मन का तम
मिटाते रहे तेरे
मन के दिए ।
129
होंठों से झरे
पाटल से ये बोल
सौरभ -भरे ।
130
कोई न भाव
ठहरता आकर
मन के गाँव
131
हमको मिले
अधूरे ही सपने
न थे अपने ।
132
धोखा दिया क्यों
हम तुम्हारे कभी
मीत नहीं थे ।
133
मिली न पाती
संदेसा दे गया था
तेरा ये मन ।
134
मुझे भरोसा
तुम पर इतना
नभ जितना ।
135
मुझे वर दो
आँचल में अपना
दुख भर दो ।
136
तुम्हारे दर्द
अँजुरी से पी लूँगा
युगों जी लूँगा ।
137
याद करूँ मैं
तुमको कैसे , जब
भूला ही नहीं ।
138
किसने देखा
कल कब , क्या होगा
भाग का लेखा ।
139
देश है छूटा
बेगानों मे खोकर
सपना टूटा ।
140
काम न आए
थे कभी हमारे जो
दाएँ व बाएँ ।
-0-