Last modified on 13 अप्रैल 2018, at 08:54

निर्वाणी आत्म-पद (भजन) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

लखोजी संतों, आतम पद निर्बानी।
आतम-तत्व परख पारख कर जीवन-मुक्ति निशानी॥
षट् विकार का कारण कहिए, व्यापक सकल समानी।
आवागमन मरन-जीवन में, परखो सत विज्ञानी॥
जीव नहीं तू ब्रह्म बताया, संतन की ये बानी।
यही व्यास वेदांती गाया, शंकर दत्त बखानी॥
गोरख नानक दादू सुंदर, कह कबीर परखानी।
जीव-ब्रह्म में नहीं कुछ भेदा, तुलसी कहत रमानी॥
जड़-चेतन से और तीसरा, कहो कौन परमानी।
काहे करो कल्पना कोरी, जो 'हरिहर' पहचानी॥