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निष्ठुरता / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'

एक अनंत व्यथा जीवन में
एक अभाव हृदय में,
सब खो, पाया मैंने यह वर
तेरे चरम प्रणय में।
ओ निष्ठुरते, दूर लक्ष्य की-
दुर्लभते, तू मेरी!
संकट-स्नेही असफल उर को
प्रिय केवल छवि तेरी!
ज्ञानी हँसें, निराशा ही पागल प्राणों की आशा है,
सर्वनाश-ज्वाला में जब आत्मार्पण की अभिलाषा है!