Last modified on 22 अगस्त 2021, at 03:50

निष्पक्षता और तटस्थता जैसी बेकार सी कोई बात / पराग पावन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:50, 22 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पराग पावन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निष्पक्षता और तटस्थता जैसी बेकार सी कोई बात
मुझसे मत करिए

मेरा एक पक्ष है
मैं एक शिकारी के साथ हूँ
जिसकी भूख ने अभी-अभी एक वनमुर्गी को मार गिराया है
मैं एक शौक के विरुद्ध हूँ
जिसने मोर की आज़ादी जैसी बेपनाह ख़ूबसूरती का
अपहरण कर लिया है

मैं बहुत साफ़-साफ़ खिंची लकीर के इस पार हूँ
जहाँ बहुत वीरान बंजर में
वनपालक का फूल खिला देने का जज्बा है
जहाँ आग के होंठ पर खड़ी एक पत्थर की अकड़
कह रही है
कि पिघलना बहुत शर्मनाक है
जब चिटककर टूट जाने का विकल्प मौजूद हो

लकीर के इस पार आसमान पर
हवा ने धूप की क़लम से लिख रक्खा है —
सावधान ! आदमी काम पर हैं
लकीर के उस पार
आपके अन्याय और लूट और ज़हालत
और घृणा और हवस की नदी
हरहराती बहती चली जा रही है

हिन्दी के एक कवि ने कहा था
कि नाव का छोटापन कोई मसला नहीं है
असल बात टकराने की है

पक्षधरता के सारे ख़तरों की पुतली के ठीक सामने
मैं उस साफ़-साफ़ खिंची लकीर के इस पार हूँ
और सूचना यह भी है
कि मैं यहाँ
अकेला नहीं हूँ ।