भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद न आने की स्थिति में लिखी कविता: चार / शरद कोकास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |संग्रह=गुनगुनी धूप में...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
नींद आखिर उड़कर कहाँ जाती होगी
शहर बीच खड़ी अट्टालिकाओं में
या बाहरी सीमा पर बसी
गन्दी बस्तियों में
 
सहमी खड़ी रहती होगी चुपचाप
बेटी के ब्याह की फिक़्र में जागते
बूढ़े बाप की देहरी पर
 
कोशिश करती होगी
बेटी के बिछौने पर जाने की
जो जाग रही होगी
बाप की छाती पर।