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नींद में रेलगाड़ी / नील कमल

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भोर की गाढ़ी नींद में
कोई सपना प्रवेश करता है
गुप्तचर की तरह
और पकड़ा जाता है
भोर की नींद के उचटते ही

यह सपना सदियों से
पीछा कर रहा है नींद का
और जब उसके पकड़े जाने के बाद
कसती है मुट्ठी
तो वह रेत बन जाता है

सपने रेत की तरह
पड़े रहते हैं चौड़े तटों पर
और बहती रहती है नींद
नदी की तरह

कितना प्यारा मज़ाक है
बुज़ुर्गों के ज़माने से
चली आ रही यह बात
कि नदी का पेट
कभी मापा नहीं जा सकता

नींद में आती है रेलगाड़ी
जिसे समय रहते
पकड़ा न गया तो
अनर्थ हो जाएगा

एक आदमी दौड़ रहा है
पूरे दमखम से
उसके प्लेटफार्म तक आते-आते
आगे बढ़ चुकी होती है रेलगाड़ी
छुक-छुक, छुक-छुक रेलगाड़ी

शायद वह आदमी
नौकरी के इंटरव्यू के लिए
नहीं पहुँच पाएगा
और नौकरी का सपना
उसकी आँखों में
रेत-सा पसर जाएगा

सपने में आता है एक जहाज़
पानी वाले जहाज़ में चढ़कर
जाना था जिस आदमी को
सात समुंदर पार
वह बेतहाशा दौड़ता हुआ आता है
कि इसके पहले ही
लंगर उठ चुका होता है
नदी के तट और चौड़े होते हैं
नदी के बीच ही
उभर आता है रेतीला टापू

सपने में एक आदमी को
मिलता है इम्तहान का पर्चा
पर्चे के सवाल देख
आदमी के हाथ के तोते
उड़ जाते हैं
कि किसी भी सवाल का जवाब
उसे नहीं आता है

अब नींद में रेत ही ज़्यादा है
पानी बहुत कम
सपने में नदी पर होता है
एक बड़ा लंबा पुल
जिस पर चलती है रेलगाड़ी
छुक-छुक, छुक-छुक रेलगाड़ी

रेलगाड़ी में बैठा कोई मुसाफ़िर
नदी को देखकर हाथ जोड़ता है
एक लड़की, दायें हाथ से
छाती से माथे तक, और फिर
दोनों कंधों को छूती
एक क्रॉस बनाती है
और अपना रेशमी स्कार्फ़
दुबारा कसकर बाँधती है
रेलगाड़ी नदी के ऊपर से
गुज़रती है तभी कोई नौजवान
एक सिक्का उछाल देता है नदी में

भोर की गाढ़ी नींद में डूबा हुआ
वह आदमी – बस प्यार से देखता है नदी को ।