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नींव जो भरते रहे हैं आपके आवास की / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:42, 6 नवम्बर 2011 का अवतरण
नींव जो भरते रहे हैं आपके आवास की ज़िन्दगी उनकी कथा है आज भी बनवास की
जिन परिन्दों की उड़ाने कुन्द कर डाली गईं जी रहे हैं टीस लेकर आज भी निर्वास की
तोड़कर मासूम सपने आने वाली पौध के नींव रक्खेंगे भला वो कौन से इतिहास की
रौंदा गया कुचला गया काटा गया फिर भी उगा आदमी ऐसे कि जैसे पत्तियाँ हों घास की
वह तो उनके शोर में ही डूब कर घुटता रहा क़हक़हों ने कब सुनी दारुण कथा संत्रास की
तब यक़ीनन एक बेहतर आज मिल पाता हमें पोल खुल जाती कभी जो झूठ के इतिहास की
आपके ये आश्वासन पूरे होंगे जब कभी तब तलक तो सूख जाएगी नदी विश्वास की
अनगिनत मायूसियों, ख़ामोशियों के दौर में देखना ‘द्विज’, छेड़ कर कोई ग़ज़ल उल्लास की