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नीमाड़: चैत / अज्ञेय

1.
पेड़ अपनी-अपनी छाया को
आतप से
ओट देते
चुपचाप खड़े हैं।

तपती हवा
उन के पत्ते झराती जाती है।

2.
छाया को
झरते पत्ते
नहीं ढँकते,
पत्तों को ही
छाया छा लेती है।