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"नीर भरी दुख की बदली / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
  
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क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
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नयनों में दीपक से जलते,<br>
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पलकों में निर्झरिणी मचली!
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मेरा पग पग संगीत भरा,<br>
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मेरा पग-पग संगीत भरा,
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नभ के नव रंग बुनते दुकूल,<br>
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नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
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छाया में मलय बयार पली,
  
मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,<br>
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मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,<br>
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चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,<br>
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रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!<br><br>
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नव जीवन अंकुर बन निकली!
  
पथ को न मलिन करता आना,<br>
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पथ को न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,<br>
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पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,<br>
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सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!<br><br>
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सुख की सिहरन बन अंत खिली!
  
विस्तृत नभ का कोई कोना,<br>
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मेरा न कभी अपना होना,<br>
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मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही <br>
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परिचय इतना इतिहास यही  
उमड़ी
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उमड़ी कल थी मिट आज चली!
कल थी मिट आज चली!<br><br>
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17:44, 26 मार्च 2016 के समय का अवतरण

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,

मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!