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मैं नीर भरी दु:ख की बदली!<br>
 
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,<br>
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,<br>
पलकों में निर्झरिणी मचली!<br><br>
मेरा पग -पग संगीत भरा,<br>
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,<br>
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,<br>
मेरा न कभी अपना होना,<br>
परिचय इतना इतिहास यही <br>
उमड़ी कल थी मिट आज चली!<br><br>