भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नुस्खा / कुमार विक्रम

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:52, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विक्रम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ, हम दुःख-दुःख खेलें
तुम अपना दुःख लेकर आओ
मैं अपना दुःख ले आ गया
आओ एक-दुसरे का दुःख बाँटें

ये रहा मेरा दुःख
ये रहा तुम्हारा दुःख
दोनों को पहले जोड़ें
अरे, ये क्या?
यह तो बन गया महादुःख!

चलो अच्छा है
चलो अब दोनों को शेक करें,
दोनों को मिक्स करें
अब पता नहीं किसका दुःख किसके हिस्से

चलो यह भी अच्छा है
अब बाँटें यह महा दुःख
अरे यह क्या? शेक किया, मिक्स किया
फिर भी रह गया
मेरे पास मेरा दुःख
तुम्हारे पास तुम्हारा दुःख

चलो, यह मन का सच्चा है
शातिर है, पहचानता है
अपना घर, अपना मन
चलो फिर से खेलें!

आओ, दुःख-दुःख खेलें
तुम अपना दुःख लेकर आओ
मैं अपना दुःख ले आ गया
आओ अपना-अपना दुःख चाटें!

'नया ज्ञानोदय', 2008