Last modified on 5 अक्टूबर 2017, at 19:02

नूतन जगत बसाने दो / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

मुझको मत रोको, जाने दो
सहा बहुत मैंने है, पीड़ा भार को।
और लुटाया है दिल के सब प्यार को।
अब न सही जाती पीड़ा, तुक रचने दो।
मुझको मत रोको, जाने दो।
क्या कहा, भंसेगी नौका मेरी
कठिन बीच मंझधार में।
रोक पायेगा मुझे कौन है ?
लेकिन जो इस पार में।
बोझिल पलकों को मत रोको, बहने दो।
मुझको मत रोको सजनी, स्वर्ग धरा पर लाने दो।
झरती बरसातों को देखो
रोती-रोतों को देखो,
हिलते तरु-पातों में मेरे
जिन्दा जख्मों को परखो।
विष-दंशित इस जग पर मुझको
स्नेह सुधा बरसाने दो
हंसो मत, मेरी इस हिम्मत पर
नूतन जगत बसाने दो।