भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नेती रहलो छै / अनिल कुमार झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 22 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह=ऋत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झरी-झरी के हरसिंगार ई नेती रहलोॅ छै,
व्याकुल मोॅन रहै कैन्हें नी चेती रहलोॅ छै।
बात अधूरा, रात अधूरा
प्रेमी रो जज्वात अधूरा,
खुसुर फुसुर से सपना टूटै
लागै छै संसार अधूरा।
हाय, अधूरापन चाकू सं रेती रहलोॅ छै,
झरी झरी के हर सिंगार ई नेती रहलोॅ छै।

छै किसान ते खुश देखी के
हरा भरा सब खेत पथार,
कोमल मन के गीत सजैने
कत्ते सुंदर टा व्यवहार।
पूजा अर्चा देव गोसांय मनौती रहलोॅ छै,
झरी झरी के हर सिंगार ई नेती रहलोॅ छै।

खड़ोॅ खोली के सब टा पानी
देलकै मंगरू आय बहाय,
अबकी शरद के शीत बनैतेॅ
दाना पोकत माय सहाय।
मगन छै भैंसिया बिना बोरने दिन बीती रहलोॅ छै,
झरी-झरी के हरसिंगार ई नेती रहलोॅ छै।