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नेपथ्य से संगीत / देवेश पथ सारिया

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कान में बांसुरी की तरह
बजती रही तुम्हारी पुकार

शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं
रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच
मैं सिर पर शौर्य पताका ताने
सूर्य-सा चमकता खड़ा था
मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में

इस विभीषिका में
बांसुरी के संगीत की रौ में
आंखें मूँद बह जाने का अर्थ होता
तीर का गले को बींधते चले जाना

बांस की धुन पर
थिरकती रही तलवार