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नेह री कूम्पल / नीलम पारीक

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बरसां सूं
तपती रोही में खड़े
ठूंठ होवण रे कगार पहुँच्या
पात बिहीने बिरख रे सारे करु निकली
एक प्रीत बादळी
पून रे हिलोरे छू गी
हेत री
इमरत बूंदां
फुट पड्यो एक
नान्हो सो अंकुर
नेह रो
पण इन सूं पहला कि
अंकुर सूं पात बण तो
काळ भम्भूलियो
जड़ स्यु ई उखाड़ फेंक्यो
प्रीत री कूम्पल
फूटने रे साथ ई
सूख गई