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Kavita Kosh से
'''मोती दो दमकते'''
'''नैनों से चुए।'''
83
चाँद जो मेरा
दूर बहुत दूर
मैं मजबूर।
84
घिरे हैं घन
तरसूँ रात दिन
दिखे न चाँद।
-0-
</poem>