Last modified on 7 सितम्बर 2019, at 15:36

नैनों से चुए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

74
कोहरा छँटा
अपने -पराए का
भेद भी जाना।
75
निकष तुम
रिश्तों की उतरी है
झूठी कलई ।
76
वक्त ने कहा-
माना मैं बुरा सही
छली तो छूटे।
77
बात अधूरी
फोन क्या कट गया,
हुई न पूरी।
78
हारे नहीं थे,
कपट ने छीने थे
सहारे सभी।
79
ओस बनके
आँसू छलक आए-
याद किसी की।
80
खारे नहीं थे,
मादक मधु लगे
आँसू तुम्हारे।
81
तिरते मिले-
भूरे घन गगन
नैनों में तेरे।
82
हथेली लिये
मोती दो दमकते
नैनों से चुए।
83
चाँद जो मेरा
दूर बहुत दूर
मैं मजबूर।
84
घिरे हैं घन
तरसूँ रात दिन
दिखे न चाँद।
-0-