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नैन तुम्हारे ! / कविता भट्ट

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1
सुरापान ही
धर्म रहा जिसका
मृत्यु तक भी
शव -मुख क्या मुक्ति
तुलसी ,गंगाजल !
2
गाली जपता
मंत्रों जैसे था वह,
मरणोपरांत
नहीं मुक्त करेगा
गीता -पाठ भी.
3
लक्ष्मीपूजन
दीपावली पर क्यों
ओ! रे पाखंडी !
परिणीता का नित्य
करते अपमान.
-4
सुरा ताल ये
नैन तुम्हारे प्रिय !
तैरूँ या डूबूँ ?
अपलक निहारूँ !
सदा बैठ किनारे .
5
जलद-नीर
जलज पर बरसे
नैन निचोड़
बिखरे मुक्ताकण
पत्र-पाँखुरी पर .