नो लख गाय सुनी हम नंद के,
तापर दूध दही न अघाने।
माँगत भीख फिरौ बन ही बन,
झूठि ही बातन के मन मान।
और की नारिज के मुख जोवत,
लाज गहो कछू होइ सयाने।
जाहु भले जु भले घर जाहु,
चले बस जाहु वृंदावन जानो।
नो लख गाय सुनी हम नंद के,
तापर दूध दही न अघाने।
माँगत भीख फिरौ बन ही बन,
झूठि ही बातन के मन मान।
और की नारिज के मुख जोवत,
लाज गहो कछू होइ सयाने।
जाहु भले जु भले घर जाहु,
चले बस जाहु वृंदावन जानो।