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अस्सी की उम्र में शुरू करता हूँ अठ्ठारह की. । मैंने कहा था कह रहा हूँ ओर दोहरा रहा हूँलेकिन बेरूत नहीं सुनता.सुनता।यह लाश है एक, जो कपड़े से करती है त्वचा की रंगत की शिनाख्त.।यह लाश है एक, जो स्याही नहीं किताब क़िताब की तरह पसरी हुई है.।
यह लाश है एक, जो शरीर के व्याकरण और शब्द-संरचना
में जिंदा ज़िन्दा नहीं रहती.।यह लाश है एक, जो धरती को एक नदी नहीं चट्टान की तरह पढ़ती है.।(हाँ , मुझे पसंद पसन्द हैं कहावतें और सूक्तियांसूक्तियाँ, कभी कभी : अगर आप प्यार में अंधे अन्धे नहीं हैं तो आप एक लाश हैं). ।
कह रहा हूँ ओर दोहरा रहा हूँ :
मेरी कविता एक पेड़ है, और दो शाखाओं के बीच,
दो पत्तों के बीच, कुछ नहीं बस
एक तने का मातृत्व है.।
कह रहा हूँ ओर दोहरा रहा हूँ :
कविता हवा का गुलाब है । हवा नहीं, लेकिन हवा की तरफ़,
परिक्रमा नहीं रास्ता ।
इस तरह मैं निरस्त करता हूँ ‘नियम’ को, और हर पल के लिए स्थापित करता हूँ एक नियम ।
इस तरह मैं क्यूबा को लादे रहता हूँ अपने कन्धों पर और न्यूयॉर्क में पूछता हूँ : कास्त्रो
कब आएगा? और काहिरा और दमिश्क के दरम्यान मैं इंतज़ार इन्तज़ार करता हूँ उस तरफ तरफ़ जाने वाली सड़क पर … स्वतंत्रता स्वतन्त्रता से सामना किया गुएवारा ने.।समय के पलंग में वे एक साथ डूबे और गहरी नींद सो गए.।जब वह जगा वह उसे नहीं मिली.।
उसने छोड़ दी नींद
और सपने में प्रविष्ट हो गया,
इस तरह,
रात के पर्दे द्वारा लाई जा रही चरस की तरफ देख रहे एक चेहरे
और एक ठन्डे ठण्डे सूरज द्वारा लाए जा रहे आईबीएम आई० बी० एम० की तरफ देख रहे दूसरे चेहरे के बीच मैंने क्रोध की नदी लेबनान को भेजा.।
एक किनारे पर उठा जिब्रान
और दूसरे पर अडोनिस.।
और मैं न्यूयॉर्क छोड़कर इस तरह गया जैसे अपना पलंग छोड़ रहा होऊँ :
स्त्री एक बुझ चुका सितारा थी
और पलंग टूट रहा था पेड़ों में जिनके बीच जगह न थी,
और अब
पहले पानी की कोच में, अरस्तू और देकार्ते को घायल करने वाली
छवियों की कोच में मैं बिखरा हुआ हूँ
लेकिन,
शान्ति हो अँधेरे और बालू के गुलाब के लिए
शान्ति हो बेरूत के लिए.
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