भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-5 / अदोनिस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हार्लेम
मैं कहीं बाहर से नहीं आया हूँ : मैं जानता हूँ तुम्हारे द्वेष को, जानता हूँ
उसकी स्वादिष्ट रोटी को, अकाल के पास कुछ नहीं बस एक आकस्मिक गरज होती है, क़ैदखानों के पास
कुछ नहीं बस हिंसा की कड़क होती है । मैं निगाह डालता हूँ
डामर की सतह के नीचे होज़-पाइपों और मुखौटों में आगे बढ़ती तुम्हारी आग पर
जूठन के ढेरों में जिन्हें ठण्डी हवा का सिंहासन गले लगाता है
दलित क़दमों में जो हवा कि इतिहास को जूतों की तरह पहने हैं ।

हार्लेम
समय है मृत्यु की वेदना और तुम हो मौत का पल :
मुझे सुनाई देते हैं ज्वालामुखियों की तरह गरजते आँसू
मैं मुँह देखता हूँ जो मनुष्यों को डबलरोटी की तरह डकार जाते हैं ।
तुम हो मिटाने वाले जिसने मिटाना है न्यूयॉर्क का चेहरा ।
तुम हो तूफ़ान जो उसे पत्ती की तरह पकड़ कर उछल देगा ।
न्यूयॉर्क आई० बी० एम० + सबवे : कीचड़ और अपराध से आती हुई यात्रा करती कीचड़ और अपराध की तरफ़ ।
न्यूयॉर्क = धरती के गर्भ में एक छेद जिसमें से
नदी-दर-नदी बहता आता है पागलपन ।

हार्लेम
न्यूयॉर्क है मृत्यु की वेदना में और तुम हो मौत का पल ।