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न किसी का घर उजड़ता, न कहीं गुबार होता / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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न किसी का घर उजड़ता , न कहीं गुबार होता
सभी हमदमों को ऐ दिल, जो सभी से प्यार होता

ये वचन ये वायदे सब, कभी तुम न भूल पाते
जो यकीन मुझपे होता, मेरा एतिबार होता

मैं मिलन की आरज़ू को, लहू दे के सींच लेता
ये गुलाब जिंदगी का, जो सदा बहार होता

कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता
जो स्वार्थ जिंदगी का, न गले का हार होता

मैं खुद अपनी सादगी में ,कभी हारता न बाज़ी
तेरी बात मान लेता, जो मैं होशियार होता