Last modified on 7 अक्टूबर 2016, at 00:53

न घर ई हमारौ न दुनियाँ हमारी / उर्मिला माधव

न घर ई हमारौ न दुनियाँ हमारी,
पतौ जे चलौ कै हमईं ए भिकारी,

इमारत तौ अब लौं धरी जों की तों ऐं,
कै साँसई अचानक चली गई बिचारी,

हबाके भरे जिन्ने दुनियाँ में ऊंचे,
बेऊ मर कैं कित्ते भये भारी-भारी,

जि निश्चित है सब कूँ ई मरनौ पडैगौ,
कभू जाकी बारी, कभू बाकी बारी,

जो कहनी ई हमकूँ, सो कहि दई ऐ हमनै,
तौ मानौ न मानौ है राजी तुम्हारी,

सबै छोड़ जानौ है दुनियाँ कौ मेला,
डरी यईं रहेंगी महलिया अटारी...