न जाने कैसी बुरी घड़ी में, दुल्हन बनी एक अभागन
पिया की अर्थी लेकर चली होने सती सुहागन
अर्थी नहीं नारी का सुहाग जा रहा है
भगवान तेरे घर का सिंगार जा रहा है
बजता था जीवन का गीत, दो साँसों के तारों में
टूटा है जिसका तार, वो सितार जा रहा है
भगवान तेरे घर का...
जलता था, जब तक जलती रही चिंगारी
बुझने को अब तन का, अंगार जा रहा है
भगवान तेरे घर का...
भव सागर की लहरों में, बिछड़े ऐसे दो साथी
सजनी मँझधार, साजन उस पार जा रहा है
भगवान तेरे घर का...
(1953) फ़िल्म 'नाग पंचमी'