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"न जाने वह किस बात पर ऐंठा है / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | सच- पहाड़ी घरों के खाली होने का | ||
+ | वीरान आँगन वानर-राज होने का | ||
+ | जाल बुनती सड़कों के नारों का | ||
+ | बिकते मूल्यों, बिकते झूठे वादों का | ||
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+ | जानकर भी अनजाना-सा बैठा है | ||
+ | न जाने वह किस बात पर ऐंठा है? | ||
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02:42, 29 जून 2019 के समय का अवतरण
सच- पीड़ा से कराहते पहाड़ों का
रोती नदियों-सिसकती घाटियों का दर्द-
खेतों से पेट न भरने का
बर्तनों-गागरों के प्यासे रहने का
जानकर भी अनजाना-सा बैठा है
न जाने वह किस बात पर ऐंठा है?
सच- सर्दी में धधकते वनों का
बिना रोपे ही सूखे उपवनों का
खाली होते पंचायती स्कूलों का
सूखते झरनों गुम बुराँस फूलों का,
जानकर भी अनजाना सा बैठा है
न जाने वह किस बात पर ऐंठा है?
सच- पहाड़ी घरों के खाली होने का
वीरान आँगन वानर-राज होने का
जाल बुनती सड़कों के नारों का
बिकते मूल्यों, बिकते झूठे वादों का
जानकर भी अनजाना-सा बैठा है
न जाने वह किस बात पर ऐंठा है?