न भूख प्यास गयी
न अपनी आस गयी
पहाड़ पिघले कब
नदी उदास गयी
थमी थी खामोशी
रचा के रास गयी
मिला शराफत को
नया लिबास, गयी
ये मेरा लहजा है ?
कहाँ मिठास गयी
लिबास उग तो गए
मगर कपास गयी
न भूख प्यास गयी
न अपनी आस गयी
पहाड़ पिघले कब
नदी उदास गयी
थमी थी खामोशी
रचा के रास गयी
मिला शराफत को
नया लिबास, गयी
ये मेरा लहजा है ?
कहाँ मिठास गयी
लिबास उग तो गए
मगर कपास गयी