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न ये अन्धेरे मुझे निगलते / राजेन्द्र राजन (गीतकार)

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न ये अन्धेरे मुझे निगलते, जो चान्द भू पर उतार लेता
जो था बिछड़ना वहाँ बिछड़ते, जहाँ मैं ख़ुद को पुकार लेता
जो पास रहकर भी दूर थे हम, कहीं समर्पण में कुछ कमी थी
तुम अपना चेहरा निखार लेतीं, मैं आईने को सँवार लेता

मैं गीत-ग़ज़लों को गुनगुनाकर, तुम्हारी यादें भुला रहा हूँ
शहर में हूँ अजनबी के जैसे, किसी तरह दिन बिता रहा हूँ
घने अन्धेरों के बीच घिरकर, यूँ मन रही है मेरी दीवाली
वो जितनी क़समें थी खाई हमने, मैं उतने दीपक जला रहा हूँ।