भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी |संग्रह= }}{{KKVID|v=M05RZgZZvwk}} {{KKCatGhazal}} <poem> न …)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
 
|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
}}{{KKVID|v=M05RZgZZvwk}}
+
}}{{KKVID|v=8YpPJFB8M9o}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>

10:15, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है

सुकू ही सुकू है खुशी ही खुशी है
तेरा गम सलामत मुझे क्या कमी है

वो मौज़ूद है और उनकी कमी है
मुहब्बत भी तहाई-ए-दायमी है

खटक गुदगुदगी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क कहते है शायद यही है

चारागो के बदले मकान जल रहे है
नया है ज़माना नई रोशनी है

जफ़ाओ पे घुट-घुट के चुप रहने वालो
खामोशी जफ़ाओ की ताईद भी है

मेरे राह पर मुझको गुमराह कर दे
सुना है कि मंज़िल करीब आ गई है

ख़ुमार-ए-बलानौश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदो की नज़र लग गई है