भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न ही कोई दरख़्त हूँ न सायबान हूँ / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 20 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न ही कोई दरख़्त हूँ न सायबान हूँ
बस्ती से जरा दूर का तनहा मकान हूँ

चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा
मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ

कैसे कहूं कि मेरा तवक्को करो जनाब
मैं खुद किसी गवाह का पलटा बयान हूँ

आँखों के सामने ही मेरा क़त्ल हो गया
मुझको यकीन था मैं बड़ा सावधान हूँ

तेरी नसीहतों का असर है या खौफ है
मुंह में जुबान भी है, मगर बेजुबान हूँ

बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
या तू ख़ुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ

एक बार आके देख तो ‘आनंद’ का हुनर
लाचार परिंदों का, हसीं आसमान हूँ