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हृदय की पीर को गीतों में भर दिया मैंने
जिया है प्यार जहां जहाँ ज़िन्दगी थी हार गयी
किसी के किसीके रूप का उन्माद कैसे भूले कोई!
पिघलती आग-सी सीने के आर-पार गयी
पलट के पलटके देखा जो तुमने लजीली आँखों से
लगा कि फिर से मुझे ज़िन्दगी पुकार गयी
वहीं-वहीं पे नज़र मेरी बार-बार गयी
भरी सभा में सबों से सबोंसे नज़र चुराती हुई
कोई गुलाब की पँखुरी से मुझको मार गयी
<poem>
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