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"पँखुरियाँ गुलाब की नम न हो तो क्या करें! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
  
पँखुरियाँ गुलाब की नम न हो तो क्या करें!
 
कुछ उधर भी प्यार के ग़म न हों तो क्या करें!
 
 
कैसे अज़नबी बने, हमसे पूछते हैं वे
 
'अब भी तेरी तड़पनें कम न हों तो क्या करें!'
 
 
हम इधर हैं बेकरार, है उधर भी इंतज़ार
 
पर नज़र के फासले कम न हो तो क्या करें!
 
 
प्यार यह हमारे ही दिल का हो भरम नहीं
 
धड़कनों में आपकी, हम न हो तो क्या करें!
 
 
जब कहा, 'गुलाब को चलके देख लीजिए'
 
बोले, 'आख़िरी है अब, दम न हो तो क्या करें!'
 
 
 
<poem>
 

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