भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पंचायती / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:11, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साच तो आ है कै
जिकी म्हैं कैवूं
म्हारी सोच्योड़ी बात
कदैई गळत नीं हो सकै
माफ करजै भायला!
थूं जिको कैवै अर समझै
बो सौ-कीं गळत है
बो आपरी समझदारी सूं
बोलतो रैयो अर
म्हैं उणनै देख‘र
औ ईज सोचतो रैयो कै
कांई अैड़ा लोग भी
कवि हुवण रो दम भरया करै
जिकां रै हिवड़ै मांय
सिवाय जळण अर नफरत रै
कीं नीं है
जीसा कैवता हा-
मिनख कीं भी बण जावै
पण सै सूं पैली
चोखो मिनख बणनो जरूरी है
जिको चोखो मिनख होसी
बो सै कीं चोखो ई करसी।