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पंछी-एक / हरि शंकर आचार्य

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खुलै आभै मांय
मुगत उडतो पंछी
सै सीमावां
सै बंदिसां नैं तोड़’र
पूगावै
सांति अर भायलापणै रो सनेसो
जगत रै छोटै सूं छोटै जीव तांई।
आपरी अठखेल्यां रै मायाजाळ मांय
मिनख रै बणायोड़ी अबखायां सूं
डर्यै बिना पूगावै,
भेळप रो सनेसो
दसूं दिसावां री सांतरी जगावां तांई।