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पंथ दौलत से न जीता जाएगा / मुकुट बिहारी सरोज

पंथ दौलत से न जीता जाएगा नादान !

स्वर्ण-कलशों में भरे मणियाँ
हज़ारों देवता भागे ।
झुक गई लेकिन करोड़ों बार
दौलत धूल के आगे ।

धूल की कैसे ख़रीदेगा अकिंचन आबरू
राख में लिपटे पड़े हैं सैकड़ों भगवान ।

शीश वे, जिनपर कि
मलयानिल डुलाता था विजन ।
पाँव वे, जिन पर कि नित
माथा झुकाता था गगन ।

एक कण के राज्य की सीमा न पाए जीत
नत पड़े हैं विश्वविजयी दम्भ के अरमान !

तू अभी आरम्भ ही करने चला है
पुस्तिका का लेख ।
इसलिए उस हाथ फैलाए हुए
इंसान को भी देख ।

राह दोनों की बराबर है, बराबर चाह
हैं नहीं, लेकिन बराबर राह के सामान !