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पटोरा जे आनलहऽ समधी, ओछे ओछे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में दुलहन के घरवालों की ओर से समधी, दुलहे के पिता की भर्त्सना की जा रही है; क्योंकि उसके द्वारा लाई चीजें छोटी हैं तथा दुलहन के लिए अनुपयुक्त हैं। यह कहना कितना मार्मिक है कि तुम्हें तो सात बेटे हैं तुम्हारी श्रद्धा किसी एक बेटे से भी पूरी हो जायगी, लेकिन मुझे तो यही एकमात्र बेटी है। मेरी श्रद्धा कैसे पूरी होगी? ऐसा विचार एकमात्र संतान के प्रति अत्यधिक प्रेम का द्योतक है।

पटोरा जे आनलहऽ<ref>ले आये</ref> समधी, ओछे<ref>छोटा</ref> ओछे।
केना<ref>किस प्रकार</ref> पहिरति<ref>पहनेगी</ref> रे, मोर सुनरी धिआ<ref>बेटी</ref>।
केना पहिरति रे, मोर गौरी धिआ॥1॥
तोहरा जे छहुँ समधी, सात बेटा।
मोरा एके रे, एकलौती धिआ॥2॥
डलबा जे आनल्हऽ समधी, ओछे ओछे।
केना बाँटब रे, परिबार बड़ऽ॥3॥
कंठा जे आनल्हऽ समधी, ओछे ओछे।
केना पहिरति रे, मोर गौरी धिआ॥4॥
तोहरा जे छहुँ समधी, सात बेटा।
मोरा एके रे, एकलौती धिआ॥5॥

शब्दार्थ
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