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"पड़ाव / संजय मिश्रा 'शौक'" के अवतरणों में अंतर

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नई  सदी  में  तरक्कियों  की  
 
नई  सदी  में  तरक्कियों  की  
 
जो  होड़  चारों तरफ लगी है  
 
जो  होड़  चारों तरफ लगी है  

09:17, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण


नई सदी में तरक्कियों की
जो होड़ चारों तरफ लगी है
ये होड़ मखलूक के लिए भली है
ये खोज आदम की है कि जिसने
कदम रखे हैं जो चाँद ऊपर
तो चाँद का वो हसीं तसव्वुर
जो शायरों ने हमें सुनाया था मुद्दतों तक
हकीकतन वो फरेब साबित हुआ है जानां
तरक्कियों ने हमें बताया
चिराग अपनी नज़र के नीचे
तमाम जुल्मत को पालता है,
तरक्कियां अब फलक पे अपनी रिहाइशों की तलाश में हैं!
मगर हमारा सवाल ये है,
सभी मसाइल का हल तो पहले तलाश कर लें
जमीं के ऊपर
फलक पे फिर आशियाँ बनाने की सोच लेंगे !
वही हैं खुशियाँ वही हैं गम
तो जनाबे-आदम को आस्मां पर
सुकून कैसे मिलेगा जानां?
ये जो समझने की सोचने की
मिली है कूवत हमें जनम से
 यही हमारी तरक्कियों की
 तहों में शामिल रही है लेकिन
यही तो सारे फसाद की जड़ बनी हुई है!
हमारे जज्बे ही बंद राहों को खोलते हैं
हमारे जज्बे हमारी राहों को गुम भी करते हैं
जिन्दगी में
यही तो वो खेल है जो
सदियों से चल रहा है जमीं के ऊपर
सभी मसाइल
वसीअ होते रहे हैं अब तक
हमारे मसाइल के हल की कोई
सबील करना पड़ेगी खुद ही !
सुलझ गए फिर जो ये मसाइल
जमीं पे अम्नो-अमान होगा
जमीं बहुत है अदम की खातिर
तरक्कियां सब भली हैं लेकिन
जमीं कम भी नहीं है तो फिर
हमें फलक पर
पनाह लेने की कुछ जरूरत अभी नहीं है !!!